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ये जो विस्तृत नीला
आसमान देख रहे हो न?
ये मेरा है,
इसलिए नहीं कि
मैंने इसे जीता है,
इसलिए कि मैं
उड़ने का माद्दा रखती हूँ,
यही बात तुम्हें
हमेशा से चुभती रही है,
जिसकी खुन्नस
निकालने के लिए
तुम मेरी
उड़ान रोकने की
कोशिशें करते रहते हो,
नाकाम कोशिशें,
कभी मेरे
पंख कतरते हो,
कभी मुझे पिंजड़ों में
बन्द करते हो,
खुद को मनाते हो बार बार कि
अब ये छटपटाएंगी,
गिड़गिड़ाएंगी,
खुश होते हो
कतरे हुए पंख देखकर,
उनसे निकलने वाली
लहू की गंध सूंघकर,
पर तुम भ्रम में हो...
जरा अपनी जमीन पर गड़ी
नजरें उठाकर
आसमान की ओर देखो,
मैं अपने नए पंख फैलाए
आसमान की ऊंचाई
और
तुम्हारी नीचता भी नाप रही हूँ
एक साथ,
हाँ...अब भी ये आसमान मेरा है!
-सरिता सिंह
वाह।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteवाह ......अप्रतिम👌👌
ReplyDeleteभ्रम टूटे तब तो एहसास हो ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
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