रोने की जगह रखना!............कुमार अनिल
घर की तामीर चाहे जैसी हो
इसमें रोने की जगह रखना!
जिस्म में फैलने लगा है शहर
अपनी तनहाइयाँ बचा रखना!
मस्जिदें हैं नमाजियों के लिए
अपने दिल में कहीं खुदा रखना!
मिलना-जुलना जहाँ जरुरी हो
मिलने-जुलने का हौसला रखना!
उम्र करने को है पचास को पार
कौन है किस का पता ये रखना!
--कुमार अनिल
अपने दिल में कहीं खुदा रखना!
ReplyDelete..........
बहुत ही सुन्दर और मौजू...
अनिलजी को हमारी बधाई....
धन्यवाद राहुल भाई
Deleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteशुक्रिया यशोदा.
अनु
धन्यवाद दीदी
Deleteबहुत खूब.
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी यह प्रस्तुति.
आभार.
शुक्रिया राकेश भाई
Deletethodi hansne ki bhi jagah rakhna bhai.
ReplyDeleteghazab likhte ho yaar ,
वैतरणी जी
Deleteभाई कहूँ य़ा बहन
शुक्रिया
Jabt hai ashk bahut palakon pe- jo bah nikle to ek fasana ho /hans to lete hai jamane bhar me- kabhi rone ko ashiyana ho /
ReplyDeletewah bhayi pahali pankti to ghazab ki hai.
शुक्रिया.... भाई दयानन्द जी
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