Friday, January 8, 2021

थकन मेरे हौसलों की .....मेजर (डॉ) शालिनी सिंह

छूते हो मुझे तो
महसूस कर पाते हो क्या
तरकीब़ मेरी रूह की
बनावट मेरे मन की
सहला पाते हो क्या
थकन मेरे हौसलों की
सलवटें मेरे ख्वाबों की
छूते हो मुझे तो
टटोल पाते हो क्या
हंसी मेरे बचपन की
शोखी मेरे यौवन की
खदेड़ पाते हो क्या
डर मेरे भीतर के
पशेमानी मेरे जीवन की
छूते हो मुझे तो
उभार पाते हो क्या
मायूस उम्मीदें मेरी
दबी ख्वाहिशे मेरी
समेट पाते हो क्या
अधूरी बातें मेरी
अनकही शिकायतें मेरी
छूते हो मुझे तो
खोल पाते हो क्या
गिरह मेरी कुंठा की
उलझे से सवालों की
सुलझा पाते हो क्या
पहेली मेरे भावों की
पशोपेश मेरे ख्यालों की
छूते हो मुझे तो
सच में छू पाते हो क्या
मुझे जो मुझमें ही कहीं
छुपी सी रहा करती है
या बहल जाते हो यूं ही
इस ख्याल से कि जानते हो मुझे
कि मुझसे मुहब्बत करते हो तुम
- मेजर (डॉ) शालिनी सिंह

10 comments:

  1. काश.. सम्भव हो पाता
    सुन्दर लेखन

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 08 जनवरी 2021 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. भावानुभवी लेखनी प्रसूत...
    स्पर्शी ...
    छू पाते हो क्या?


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  4. बहुत ही खूबसूरती से एहसासों का पुष्पगुच्छ सजाया है आपने शालिनी जी.. सुन्दर रचना..

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  5. पता नहीं कौन इस प्रकार किसी को छू पाता है, एक प्यास है शायद आपसी अन्तर्मन की प्रतिस्पर्धा है। यह चलती ही रहेगी जबतक दबे कुचले से अरमान कहीं विचरते रहेंगे।
    यह रचना वाकई छू गई मुझे।
    शुभकामनाएँ। ।।।।।

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