ज़िन्दगी की कशमकश से परेशान बहुत है,
दिल को न उलझाओ ये नादान बहुत है।
यूं सामने आ जाने पर कतरा के गुजरना,
वादे से मुकर जाना उसे आसान बहुत है।
यादें भी हैं, तल्खी भी है, और है मोहब्बत,
तू ने जो दिया दर्द का सामान बहुत है।
अश्क कभी, लहू कभी, आँख से बरसे,
बेदाग़ मोहब्बत का ये अंजाम बहुत है।
तूने तो सुना होगा मेरे दिल का धड़कना,
छूकर भी देख लेना ये बेजान बहुत है।
बहुत तड़प लिए अब उससे बिछड़ कर,
पा जाएँ खोने वाले को अरमान बहुत है।
-सुदर्शन शिवानी
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 07 जनवरी 2021 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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ReplyDeleteबहुत तड़प लिए अब उससे बिछड़ कर,
पा जाएँ खोने वाले को अरमान बहुत है।
वाह!
सुंदर शब्द संयोजन।