तुमको बाँहों के बन्धन में मैं बाँध लूँ
नेह से तेरे मस्तक पर मैं चूम लूँ
शुभ दिवस पर तुम्हें क्या मैं अर्पण करूँ
धड़कनों की मधुर तान पर झूम लूँ
अपनी झोली भरूँ तेरे आशीष से
भर दूँ तेरे हृदय को अमर प्यार से
मन तो आकुल बहुत है तेरी याद में
बाँध लू चाँद अंबर में मनुहार से
नव सृजन से मैं तेरी करूँ अर्चना
शब्द हैं मौन कह दूँ इशारों से मैं
तुम तो नयनों से उतरे हृदय में बसे
कल्पना को सजाती सितारों से मैं
चूम कर तेरे माथे की उलझी लटें
भर दिया प्यार से सांध्य आकाश है
बिखरी अलकों को सुलझा रही हूँ तेरी
भर गया आज तन मन में मधुमास है
बह चली नेह गंगा नयन कोर से
भीगते छोर आँचल किनारों से हैं
प्रीति भरके प्रवाहित हुई एक नदी
झूमती दस दिशाऐं बहारों से हैं
तब प्रणय गीत अधरों पे सजने लगे
बन्द पलकें सजल डबडबाने लगीं
लेखनी चल पड़ी तेरे अहसास कर
शब्द दर शब्द भर कंपकंपाने लगी
-डॉ. अंशु सिंह
सुन्दर रचना..
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत कृति
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
हार्दिक आभार आदरणीय 🙏🙏
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबह चली नेह गंगा नयन कोर से
ReplyDeleteभीगते छोर आँचल किनारों से हैं
प्रीति भरके प्रवाहित हुई एक नदी
झूमती दस दिशाऐं बहारों से हैं
कोमल भावनाओं से ओतप्रोत बहुत श्रेष्ठ सुंदर रचना...
रचना को असीमित मान से अभिसिंचित करने कें लिये आदर सहित कोटिशः धन्यवाद आदरणीय 🙏🙏
Deleteख़ूबसूरत अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआभार सहित धन्यवाद आदरणीय 🙏🙏
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