अपनी क़ब्रों के ज़मीदार बने बैठे हैं,
बेनियाज़ी में भी दिलदार बने बैठे हैं।
उन को ग़द्दारी की ऐनक से न देखो प्यारे,
जो अज़ल से ही वफ़ादार बने बैठे हैं।
आंधी तूफ़ान में भी सीना सिपर रहते हैं,
दुश्मनों के लिए तलवार बने बैठे।
सारी तामीर की तहरीर को पढ़ कर आओ,
हर ज़माने के ही मेमार बने बैठे हैं।
चाहने से तेरे ग़रक़ाब नहीं हो सकते,
डूबती कश्ती के पतवार बने बैठे हैं।
जो कि सन्नाटे में घुंघुरू से डरे रहते हैं,
सहमी पाज़ेब की झंकार बने बैठे हैं।
प्यार की बात समझ मे नहीं आती जिनको,
राहे उलफ़त में वो दीवार बने बैठे हैं।
मुंह की खाते रहे मैदान में जो जा जा कर,
दीन व दुनिया के वो सरदार बने बैठे हैं।
सिर्फ़ बदकारी के अफ़सानों में मिलते हैं जो,
' मेहदी ' अब साहबे किरदार बने बैठे हैं।
- मेहदी अब्बास रिज़वी
" मेहदी हल्लौरी "
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteमुंह की खाते रहे मैदान में जो जा जा कर,
ReplyDeleteदीन व दुनिया के वो सरदार बने बैठे हैं। सुन्दर सृजन।
वाह ! मेहदी साहब से मिलवाने के लिए शुक्रिया ।
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