हर इरादा मोहब्बत का नाकाम आया है
राहें अपनी जुदा हुई हैं वो मकाम आया है।
सुना है दोस्ती से बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता
मेरे दुश्मनों में दोस्तों का ही नाम आया है।
वो ख़त जो हमने लिखेथे उनको बेकरारी में
जवाब में हमारी मौत का फरमान आया है।
गुनाह ए इश्क दोनों ने ही किया था कभी
बस मुझपे ही क्यों इश्क का इलज़ाम आया है।
यह आखिरी है मुलाकात इसे कुबूल करो
बेवफा तेरे लिए आखिरी सलाम आया है।
मुझे हर हाल में जीना गंवारा है जानिब
जब जिसकी जरूरत थी वो कब काम आया है।
- पावनी जानिब सीतापुर
वाह
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 16 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteयह आखिरी है मुलाकात इसे कुबूल करो
ReplyDeleteबेवफा तेरे लिए आखिरी सलाम आया है।
मुझे हर हाल में जीना गंवारा है जानिब
जब जिसकी जरूरत थी वो कब काम आया है।
.. बहुत खूब!
वाह!बहुत सुंदर
ReplyDeleteToo good
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Thankyou for this information
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