अकेले खड़े हो मुझे तुम बुला लो।
मायुस क्यों हो ,जरा मुस्कुरा लो।
रात है काली और अँधेरा घना है,
तम दूर होगा तू दीपक जला लो।
भरोसा न तोड़ो, मंजिल मिलेगी,
जो मन में बुने हो सपने सजा लो।
देखो तो कितनी है रंगीन दुनियाँ,
इन रंगों को आ मन में बसा लो।
रूठा न करना कभी भी किसी से,
रूठे हुए को जरा तुम मना लो।
पराये को अपना बनाना कला है,
अपनों को अपने दिल में बसालो।
बुराई किसी की तुम,मन में लाओ,
अच्छाईयों को भी अपना बना लो।
प्यार सिखाता जो,वह गीत गाओ,
झंकार करता , गजल गुनगुनाओ।
-सुजाता प्रिय
सुन्दर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 30 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteपराये को अपना बनाना कला है,
ReplyDeleteअपनों को अपने दिल में बसालो।
बहुत सुंदर रचना....