शाम-ए -महफ़िल है-
मेरे दिल के मेहमान हो तुम।
मेरी चाहत है समंदर!
फिर क्यों परेशान हो तुम?
सबने मुख मोड़ लिया,
आँखें हैं नम,व्याकुल मन
दीप आँधी में जला लूँगी
कि मेरे भगवान हो तुम।
आके मिल जाओ-बादलों से
गिर रही रिमझिम,
जानेमन, जानेचमन,
जानेवफ़ा, मेरी जान हो तुम।
प्रियतम! दीपों की टोली,
तुम रंग भी हो रंगोली।
थाल पूजा का हो पावन कि
मेरे घनश्याम हो तुम।
डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
प्रियतम! दीपों की टोली,
ReplyDeleteतुम रंग भी हो रंगोली।
थाल पूजा का हो पावन कि
मेरे घनश्याम हो तुम।
डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
वाह। कविता जी की अनुराग भरी भावपूर्ण रचना के लिए उन्हे बधाई और शुभकामनायें🌹🌹🙏🙏🌹🌹
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, यशोदा दी।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 01 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह! सुंदर।
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