लगी है चोट जो दिल पर बता नहीं सकते
ये वो कसक है जो कहकर सुना नहीं सकते
तुम्हारे प्यार को भूलें तो भूल जायें हम
तुम्हारी याद को दिल से भुला नहीं सकते
उन्होंने दम में किया ख़त्म ज़िन्दगी का सफ़र
जो कह रहे थे कि दो पग भी जा नहीं सकते
तुम्हारे रूप को आँखों में भर लिया हमने
किसीसे और अब आँखें मिला नहीं सकते
हमारा दर्द उन्हें दूसरे कहें तो कहें
हम अपने आप तो होँठों पे ला नहीं सकते
हमें वो आँख दो परदे के पार देख सकें
जो सामने से ये परदा उठा नहीं सकते
सही है, आपने देखा नहीं गुलाब का फूल
कभी हम आपको झूठा बता नहीं सकते
-गुलाब खंडेलवाल
बेहतरीन
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteदिल की चोट आँखों से ही तो बयां होती है साहिब!
ReplyDeleteजुबां ख़ामोश रहती है बारहा, कभी हिला नहीं करते ...
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 9.1.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3575 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
उम्दा/बेहतरीन।
ReplyDelete