आँखें न देखते हैं आँसू,
आँखों से गिरते हैं आँसू।
रातों भर आँखों में रह रह कर,
दो आँखों भीगते हैं आँसू।
अतीत को जाती हैं आँसू।
जब इच्छायें टूट गए तो,
तब गुप्त रूप में हैं आँसू।
जन्म से शुरू हुई आँसू ,
देखा या न देखा, हैं आँसू।
जाति भेद न जानते हैं,
अनंत, गर्मी आँसू।
स्वप्नों की तरह हैं आँसू,
कितनी हैं, नहीं हैं आँसू।
मुस्कुराहटें के पीछे हैं ,
कोई भी ना देखा हैं वो आँसू।
-दुल्कान्ती समरसिंह
Dulkanthie Samarasinghe
2020/01/02.
बढ़िया।
ReplyDeleteभीड़ से अलग लेखनी ....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
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