हाँ मौन के भी "शब्द" होते हैं
और बेहद मुखर भी
चुन -चुन कर आते हैं ये उस अँधेरे से
जहाँ मौन ख़ामोशी से पसरा रहता है
बिना शिकायत -
बैठे-बैठे न जाने क्या बुनता रहता है .. ?
शायद शब्दों का ताना-बना
और ये शब्द विस्मित कर देते हैं
तब.... जब वो सामने आते हैं
प्रेम की एक नयी परिभाषा गढ़ते हुए
अथाह सागर ... असीमित मरुस्थल ... जलद व्योम
न जाने कितना कुछ
अपने में समेटे हुए .. छिपाए हुए
ओह ...... !!
जब सुना था उन्हें .... तब रो पड़ी थी मैं
हाँ मौन के भी शब्द होते हैं
और बेहद मुखर भी
कभी सुनना उन्हें
रो दोगे तुम भी ...... जानती हूँ मैं
अभी भी कितना कुछ समेटे हैं अपने भीतर
भला तुम क्या जानो .. ?
लेखिका परिचय - गुन्जन
आदरणीया गुंजन जी की लेखन शैली अत्यंत ही प्रभावशाली है। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 16.01.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3582 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी ।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
वाह
ReplyDeleteमौन के शब्द....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर, सार्थक सृजन
वाह!!!
"हाँ मौन के भी "शब्द" होते हैं" बहुत खूब
ReplyDeleteअत्यंत प्रभाव शाली ,मौन के शब्द सुनते हुए
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति सुंदर भाव।
ReplyDeleteगुंजन दी, मौन के शब्द...सिर्फ़ और सिर्फ़ प्यार करनेवाला इंसान ही समझ सकता हैं। सुंदर अभुव्यक्ति।
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