Thursday, November 30, 2017

हर दीपक दम तोड़ रहा है...कुसुम कोठारी

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चारों तरफ कैसा तूफान है
हर दीपक दम तोड़ रहा है

इंसानों की भीड जितनी बढी है
आदमियत उतनी ही नदारद है

हाथों मे तीर लिये हर शख्स है
हर नजर नाखून लिये बैठी है

किनारों पे दम तोडती लहरें है
समंदर से लगती खफा खफा है

स्वार्थ का खेल हर कोई खेल रहा है
मासूमियत लाचार दम तोड रही है

शांति के दूत कहीं दिखते नही है
हर और शिकारी बाज उड रहे है

कितने हिस्सों मे बंट गया मानव है
अमन ओ चैन मुह छुपा के रो रहा है।
-कुसुम कोठारी

9 comments:

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    1. जी आभार आपका तहे दिल से।
      शुभ दिवस।

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    2. कितने हिस्सों में बँट गया है मानव
      अमन औ चैन मुह छुपा के रो रहा है
      वाह!!!!
      बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना...

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  2. बहुत सुंदर रचना मन को छू गई

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    1. नीतू जी शुक्रिया तहे दिल से।
      शुभ दिवस।

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  3. आदरणीय यशोदा जी मेरी रचना को "मेरी धरोहर मे" शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार अच्छे पाठक मिल जाय तो रचनाकार का हौसला बढ़ता है और ऐसा मान मिलने पर और अच्छा लिखने की प्रेरणा।
    पुनः आभार।
    शुभ दिवस।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-12-2017) को खोज रहा बाहर मनुज, राहत चैन सुकून : चर्चामंच 2804 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. तूफां है..ये
    कैसा..आया
    चारों और से
    टूट रहा है
    दम दीपक का
    एक अच्छी कविता
    आदर सहित..

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