यारो कू-ए-यार की बातें करें
फिर गुल ओ गुल-ज़ार की बातें करें
चाँदनी में ऐ दिल इक इक फूल से
अपने गुल-रुख़्सार की बातें करें
आँखों आँखों में लुटाए मै-कदे
दीदा-ए-सरशार की बातें करें
अब तो मिलिए बस लड़ाई हो चुकी
अब तो चलिए प्यार की बातें करें
फिर महक उट्ठे फ़ज़ा-ए-ज़िंदगी
फिर गुल ओ रुख़सार की बातें करें
महशर-ए-अनवार कर दें बज़्म को
जलवा-ए-दीदार की बातें करें
अपनी आँखों से बहाएँ सैल-ए-अश्क
अब्र-ए-गौहर-बार की बातें करें
उन को उल्फ़त ही सही अग़्यार से
हम से क्यूँ अग़्यार की बातें करें
'अख़्तर' उस रंगीं अदा से रात भर
ताला-ए-बीमार की बातें करें.
-'अख्तर' शीरानी
सुन्दर रचना
ReplyDeleteआज के समय में प्यार-मोहब्बत सपना हुआ जाता है !!
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30-11-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2803 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
वाह लाजवाब ग़ज़ल
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