मुझे आज इतना दिलासा बहुत है..
कि उसने कभी मुझको चाहा बहुत है ;
उसी की कहानी उसी की हैं नज़्में...
उसी को ग़ज़ल में उतारा बहुत है ;
बड़ी सादगी से किया नाम मेरे...
तभी दिल मुझे उसका प्यारा बहुत है ;
उठाओ न ख़ंजर मेरे क़त्ल को तुम...
मुझे तो नज़र का इशारा बहुत है ;
किसी और से कोई पहचान क्या हो...
सितमगर वही एक भाया बहुत है ;
सिवा उसके कोई नहीं आज मेरा....
वही दर वही इक ठिकाना बहुत है ;
गले तो मिले दिल मिलाते नहीं हैं...
ज़माने में यारों दिखावा बहुत है ;
निग़ाहें मिलाते अगर सिर्फ़ हम से...
यक़ीनन ये कहते भरोसा बहुत है ;
ज़माने का आख़िर भरोसा ही क्या है....
फ़क़त इक तुम्हारा सहारा बहुत है ;
लुटाए हुए आज बैठी हूँ ख़ुद को ..
मुहब्बत करो तो ख़सारा बहुत है ;
तुम्हें पा लिया है ज़माना गंवा कर..
मेरे वास्ते ये असासा बहुत है ;
कड़ी धूप का है ज़माना ये ‘तरुणा’...
मुझे उसकी पलकों का साया बहुत है...!!
उठाओ न ख़ंजर मेरे क़त्ल को तुम...
ReplyDeleteमुझे तो नज़र का इशारा बहुत है ;
....बहुत खूब ! बहुत सुंदर !!!
bahut accha likha hai aap ne...
ReplyDeletenishabd kar de aisi rachna ....lajwab
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (24-11-2017) को "लगता है सरदी आ गयी" (चर्चा अंक-2797) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (24-11-2017) को "लगता है सरदी आ गयी" (चर्चा अंक-2797) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
उम्दा लेखन गजल की धारा प्रवाहता और माधुर्य लिए।
ReplyDeleteशुभ संध्या।
बहि सुन्दर गजल....
ReplyDeleteबड़ी सादगी से किया नाम मेरे...
ReplyDeleteतभी दिल मुझे उसका प्यारा बहुत है ;
लुटाए हुए आज बैठी हूँ ख़ुद को ..
मुहब्बत करो तो ख़सारा बहुत है ;
बहुत सुंदर ।।
सुन्दर
ReplyDeleteआपके विचारों में स्प्षटता बहुत है.
ReplyDeleteप्रवाह और लय के साथ बहुत अच्छी अभिव्यक्त बन पड़ी है आपकी रचना...
मेरी बधाई और शुभकामनाएं,
सादर,
अयंगर