ख़त तुमको दिलदार लिखूँगी..
पायल कंगन हार लिखूँगी ;
मैं कश्ती हूँ जीवन तूफां...
पर तुमको पतवार लिखूँगी ;
जो है उल्फ़त नए चलन की...
उसको कारोबार लिखूँगी ;
सीने से एक बार लगा लो...
तुमको अपना प्यार लिखूँगी ;
जब भी मयस्सर होगी फ़ुर्सत...
मिलना नदिया पार लिखूँगी ;
तुम हो मेरे , हाँ मेरे हो...
एक नहीं सौ बार लिखूँगी ;
तुम ही नहीं तो मैं काजल को...
इन पलकों पर भार लिखूँगी ;
तुम बिन जो बीतेगा 'तरुणा'...
उस पल को आज़ार लिखूँगी..!!
(आज़ार- दुःख )
सरल सरस आकर्षक शब्दों की धार प्रवाहता के साथ सुंदर रचना।
ReplyDeleteशुभ दिवस ।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह!!बहुत सुंदर ।
ReplyDeletekya bat hai.....behad shandar rachna..
ReplyDeletepadhkar man khush ho gaya
नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 23-11-2017 को प्रकाशनार्थ 860 वें अंक में सम्मिलित की गयी है। प्रातः 4:00 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक चर्चा हेतु उपलब्ध होगा।
ReplyDeleteचर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।
वाह वाह!!!! बहुत बहुत बहुत शानदार। लाज़वाब। बेहद उम्दा।
ReplyDeleteप्रेम को आर्पित करती रचना ..जी बहुत खुब..लिखा आपने..!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ....लाजवाब....
ReplyDeleteआदरणीय तरुणा जी ब-- ड़ा ही हृदयस्पर्शी ख़त है | सभी पंक्तियाँ मानों मन से निकल मन में समा जाती हैं |
ReplyDeleteमैं कश्ती हूँ जीवन तूफां...
पर तुमको पतवार लिखूँगी --- बहुत खूब !!!!!!!!!!
सस्नेह