बेटियाँ ही नही
बेटे भी विदा हो जाते हैं
कभी आगे पढ़ने
तो कभी आगे बढ़ने...
कोई सात सौ मील दूर
कोई सात हज़ार मील दूर
तो कोई सात समुन्दर पार..
माएँ निष्ठुर सी
देखती रहती हैं सब
जुटाती हैं सामान
भरती हैं सूटकेस में व्यवस्थाएं..
भीतर गूंजते रहते हैं
असहाय लाचार स्वर
जिन्हें वे कभी परिस्थितियों पर
कभी भाग्य पर
और कभी सुखद भविष्य की आशा पर औंधाती रहती हैं..
पिता कुछ चिंतित
कुछ अपरिचित
छुपाते रहते हैं अपनी चिन्ताएं..
और बेटा भीतर है पिघला पिघला
थोड़ा विचलित
पर कोशिश कर रहा है
निश्चिन्त दिखने की..
आजकल माँ के इर्द गिर्द ही बना रहता है
पिता से अब किसी बात पर जिरह नही करता
भाई से अब कोई तकरार नही होती..
वहाँ सात समुन्दर पार
न माँ न पिता न भाई..
और आने की कोई मुद्दत नहीं
अब अकेले ही लड़नी होगी हर जंग
ये अच्छी तरह पता है उसे...
~निधि सक्सेना
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बढ़िया रचना !
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉगिंग में आपका लेखन अपने चिन्ह छोड़ने में कामयाब है , आप लिख रही हैं क्योंकि आपके पास भावनाएं और मजबूत अभिव्यक्ति है , इस आत्म अभिव्यक्ति से जो संतुष्टि मिलेगी वह सैकड़ों तालियों से अधिक होगी !
मानती हैं न ?
मंगलकामनाएं आपको !
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
इन दिनों बेटे की विदेश जाने की तैयारी में जुटे हैं हम दोनों
ReplyDeleteआपकी रचना पढ़कर मन भर आया
वाकई
आजकल माँ के इर्द गिर्द ही बना रहता है
पिता से अब किसी बात पर जिरह नही करता
सच है बहुत भीतर तक उतरने वाला
बहुत कमाल की रचना
सादर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (03-07-2016) को "मिट गयी सारी तपन" (चर्चा अंक-2654) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteबिछोह सभी को सालता है, किसी का दर्द सामने आ जाता है किसी का घुमड़ता रहता है
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