फिर घटा ज़हन के आकाश में छाई हुई है
मेरे चौखट प कोई नज़्म सी आई हुई है
लौट आईं हैं गए दिन की सदायें मुझमें
भीगती कांपती इक शाम भी आई हुई है
ऐसी शामों में तुझे याद तो आता होगा
ये घडी हमने कभी साथ बिताई हुई है
ये सड़क रात के आगोश में सिमटी हुई आज
मुझसे कहती है क्यों उम्मीद लगाई हुई है
जानता हूँ मैं इस आवाज़ के नक़्शे पूरे
तेरी आहट प कई रोज़ पढ़ाई हुई है
किसलिए नम हुई जाती है तुम्हारी पलकें
ये कहानी तो तुम्हे मैंने सुनाई हुई है
दिनेश नायडू
09303985412
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