वह रात की स्याही से
दिन का गुणगान करती
और दिन की रोशनी चुराकर
रात को चमकाती।
वह हर शब्द से उम्मीद निकालती,
इंतजार में अपनी मेंहदी के रंग और चटक करती
और खुशबू से अपने स्वप्न महाकाती।
वह अधखिली कलियों को चूमती
और खिलने पर
उन्हें दूर से निहारती।
एक दिन वह अपनी उम्मीद
उदास लडकियों में बाँट आई।
उसने उनकी हाथों में
अपने हाथों से मेंहदी लगाई।
अब खुशबू फिजाओं में बिखरेगी
और प्रेम के कत्थई रंग चर्चे में होंगे।
वह दूर खड़ी खुशियों का आनंद ले रही है।
- सीमा श्रीवास्तव
बहुत, बहुत धन्यवाद बहन ☺
ReplyDeleteसीमा
ReplyDeleteबहुत बढ़िया