अब मैं भी बेगुनाह हूँ रिश्तों के सामने
मैंने भी झूठ कह दिया झूठों के सामने
एक पट्टी बाँध रक्खी है मुंसिफ ने आँख पर
चिल्लाते हुए गूंगे हैं बहरों के सामने
मुझको मेरे उसूलों का कुछ तो बनाके दो
खाली ही हाथ जाऊं क्या बच्चों के सामने
एक वक़्त तक तो भूख को बर्दाश्त भी किया
फिर यूँ हुआ वो बिछ गयी भूखों के सामने
वो रौब और वो हुक्म गए बेटियों के साथ
खामोश बैठे रहते हैं बेटों के सामने
मुद्दत में आज गाँव हमें याद आया है
थाली लगा के बैठे हैं चूल्हों के सामने
मैंने भी झूठ कह दिया झूठों के सामने
एक पट्टी बाँध रक्खी है मुंसिफ ने आँख पर
चिल्लाते हुए गूंगे हैं बहरों के सामने
मुझको मेरे उसूलों का कुछ तो बनाके दो
खाली ही हाथ जाऊं क्या बच्चों के सामने
एक वक़्त तक तो भूख को बर्दाश्त भी किया
फिर यूँ हुआ वो बिछ गयी भूखों के सामने
वो रौब और वो हुक्म गए बेटियों के साथ
खामोश बैठे रहते हैं बेटों के सामने
मुद्दत में आज गाँव हमें याद आया है
थाली लगा के बैठे हैं चूल्हों के सामने
फेसबुक से
बहुत ही सुन्दर और ह्रदय स्पर्शी रचना
ReplyDeletebahat gehra aur sundar rachna, Sachin ji
ReplyDeleteGajendra Mohan Dev Sarma
bahat gehra aur sundar rachna, Sachin ji
ReplyDeleteबहुत उम्दा अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteनई रचना : सूनी वादियाँ
वाह बहुत बेहतरीन
ReplyDeleteवाह... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteमुझको मेरे उसूलों का कुछ तो बनाके दो
ReplyDeleteखाली ही हाथ जाऊं क्या बच्चों के सामने
एक वक़्त तक तो भूख को बर्दाश्त भी किया
फिर यूँ हुआ वो बिछ गयी भूखों के सामने
आहाहा सीधे यहाँ .... यहाँ,,, दिल में ....
बेहतरीन ...
ReplyDeleteअब हमें भी गाम्व याद आने लगे हैं
ReplyDeleteलाजवाब ग़ज़ल...गज़ब तेवर...
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