Friday, June 28, 2013

जो मंजर तलाश करता है....अजीज अंसारी




जो फन1 में फिक्र2 के मंजर3 तलाश करता है
वो राहबर4 भी तो बेहतर तलाश करता है

न जाने कौन सा पैकर5 तलाश करता है
फकीर बनके वो घर-घर तलाश करता है

बहादुरों की तो लाशें पड़ी हुई हैं मगर
वो मेरा जिस्म, मेरा सर तलाश करता है

यकीं जरा भी नहीं अपने जोरोबाजू6 पर
हथेलियों में मुकद्दर तलाश करता है

मैं उसके वास्ते गुलदस्ता लेकर आया हूं
वो मेरे वास्ते पत्थर तलाश करता है

हमारे कत्ल को मीठी जुबान7 है काफी
अजीब शख्स है खंजर8 तलाश करता है

परिन्दे उसको खलाओं में ढूंढ आए 'अजीज'
बशर अजल9 से जमीं पर तलाश करता है।


- अजीज अंसारी

1. कला 2. सोच-विचार 3.दृश्य 4. रास्ता बताने वाला 5. शरीर 6. बाजुओं की शक्ति 7. भाषा-बोली 8. छुरी-चाकू 9. दुनिया का पहला दिन

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शुक्रवार (28-06-2013) को भूले ना एहसान, शहीदों नमन नमस्ते - चर्चा मंच 1290 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. हमारे कत्ल को मीठी जुबान7 है काफी
    अजीब शख्स है खंजर8 तलाश करता है
    बहुत खूब ! गज़ल का हर शेर शानदार है ! बहुत खूबसूरत प्रस्तुति !

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  3. वाह बहुत सुंदर गजल

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  4. यकीं जरा भी नहीं अपने जोरोबाजू6 पर
    हथेलियों में मुकद्दर तलाश करता है..BAHUT SUNDAR ....

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  5. waaaaaaaaaaah waaaaaaaaah bahot khub gazal hai .....jitanee tareef kare kam hai...........

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