Tuesday, June 18, 2013

भीतर का पेड़ उग रहा है.............चम्पा वैद





भीतर का पेड़ उग रहा है
जिसके बीज मैं निगल गई थी बचपन में
 
इसके बड़े होने में पूरे साठ वर्ष लग गए
मेरी नसें इसकी जड़ें हैं


मेरी नाड़ियां इसकी शाखाएं
मेर विचार इसके छोटे बड़े पत्ते


शब्द भीतर अपनी जगह बनाते
उगलने लगते हैं
पिछला सब करा धरा।

 

- चम्पा वैद


 

10 comments:

  1. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,रचना साझा करने के लिए आभार यशोदा जी

    RECENT POST : तड़प,

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  2. उम्दा अभिव्यक्ति
    खूबसूरत प्रस्तुति

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  3. बहुत सुंदर रचना
    बहुत सुंदर

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  4. सुंदर रचना और बहुत ही गहरे भाव लिये हुए.......बहुत गहरे

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  5. बहुत उम्दा ..सुन्दर रचना

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  6. अच्छा बिम्ब है..

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  7. बहुत गहन अभिव्यक्ति...

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  8. बहुत बढ़िया रूपक बाँधा है -बधाई !

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  9. वाह बहुत सुंदर रूपक रचा है ! बहुत बढ़िया !

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