माँ.. कैसे तुम्हें
एक शब्द मान लूँ
दुनिया हो मेरी
पूरी तुम
आंखे खुलने से लेकर
पलकों के मुंदने तक
तुम सोचती हो
मेरे ही बारे में
हर छोटी से छोटी खुशी
समेट लेती हो
अपने ऑंचल में यूँ
जैसे खज़ाना पा लिया हो कोई
सोचती हूँ ...
यह शब्द दुनिया कैसे हो गया मेरी
पकड़ी थी उंगली जब
पहला कदम
उठाया था चलने को
तब भी ...
और अब भी ...मुझसे पहले
मेरी हर मुश्किल में
तुम खड़ी हो जाती हो
और मैं बेपरवाह हो
सोचती हूँ
माँ..हैं न सब संभाल लेंगी .....
एक शब्द मान लूँ
दुनिया हो मेरी
पूरी तुम
आंखे खुलने से लेकर
पलकों के मुंदने तक
तुम सोचती हो
मेरे ही बारे में
हर छोटी से छोटी खुशी
समेट लेती हो
अपने ऑंचल में यूँ
जैसे खज़ाना पा लिया हो कोई
सोचती हूँ ...
यह शब्द दुनिया कैसे हो गया मेरी
पकड़ी थी उंगली जब
पहला कदम
उठाया था चलने को
तब भी ...
और अब भी ...मुझसे पहले
मेरी हर मुश्किल में
तुम खड़ी हो जाती हो
और मैं बेपरवाह हो
सोचती हूँ
माँ..हैं न सब संभाल लेंगी .....
माँ..की कलम मेरे लिए ....
लगता है
किसी मासूम बच्चे ने
मेरा आँचल पकड़ लिया हो
जब जब मुड़के देखती हूँ
उसकी मुस्कान में
बस एक बात होती है
'मैं भी साथ ...'
और मैं उसकी मासूमियत पर
न्योछावर हो जाती हूँ
आशीषों से भर देती हूँ
कहती हूँ
'मैं तो तुम्हारे पास हूँ ...'
धन्यवाद दीदी
ReplyDeleteसुन्दर मनभावन रचना
Aashawan banati he apne bacho v balko ko Maa. Rishte ko itne uttam lai aur shabdo me pirone wali kavitri ji ko bahut Badhai.
ReplyDeleteबेहतरीन, भावुक कर दिया।
ReplyDeleteमाँ ममता का नाम है, माँ है बहुत उदार।
ReplyDeleteमाँ के आँचल में भरा, दुनियाभर का प्यार।।
बहुत भावपूर्ण दिल को छू लेने वाली प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई
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ReplyDeleteबधाई इस अप्रतिम ज़ज्बाती रचना के लिए प्यार की धरोहर के लिए ,जीवन की ख़ुशी और आह्लाद के लिए
हाँ माँ सिर्फ एक शब्द नहीं पूरा संसार है संस्कार है ,पीढ़ियों तक सहज अंतरित .हलचल नै पुरानी पर जाने
की कोशिश ना -कामयाब रही .लोग इन की इजाज़त न मिली ..
माँ.. कैसे तुम्हें
ReplyDeleteएक शब्द मान लूँ
दुनिया हो मेरी
पूरी तुम.............
मेरी हर मुश्किल में
तुम खड़ी हो जाती हो
और मैं बेपरवाह हो
सोचती हूँ
माँ..हैं न सब संभाल लेंगी .....
वाकई हमारी पूरी जिंदगी माँ के इर्द गिर्द ही घूमती रहती है ।
माँ शब्द छोटा है पर उसको शब्दों मे परिभाषित नहीं किया जा सकता उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है
सुंदर रचना के लिए आपको बधाई ।
सचमुच माँ तो बस माँ होती है। किसी लफ्ज़ को उसके बराबर नहीं खड़ा किया जा सकता । पूरी एक दुनिया माँ है शायद, और माँ के भीतर एक पूरी दुनिया।
ReplyDeleteमैं तो तुम्हारे पास हूं …
बहुत भावपूर्ण!
सच है सदा जी
मां कभी बच्चों से अलग नहीं होती …
बेहतरीन !
संवेदनशील रचना के लिए आभार !
शुभकामनाओं सहित…
bahut hi marsparshi prastuti,
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत बधाई आपको
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