Tuesday, April 24, 2012

अब भी मिटा मिटा सा है.......अज्ञात(प्रस्तुतिकरणः सोनू अग्रवाल)

तुम्हारे साथ के
कुछ भीगे सावन
अब भी गीले पड़े हैं...

उम्र गुजर रही है
मगर होंठ
अब भी सिले पड़े हैं..............

कुछ चाहतों के दबे ख़त
कुछ ख्वाहिशों की अधूरी
ग़ज़ल...........

रात के दुसरे पहर में
अनदेखे ख्वाब
सिसक उठते हैं...............

और आँगन के
गमले में
पोधों के पत्ते
अब तक पीले पड़ें हैं...........

तुम्हारा नाम
नीली स्याही से
मेरी हथेलियों में
अब भी मिटा मिटा सा है...........

मुझे नहीं पता
मेरी किस्मत में तुम
कितनी हांसिल हो..........

चलो दूर सही
तुम मेरी हिचकियों में
अब भी शामिल हो !!!
--अज्ञात 
प्रस्तुतिकरणः सोनू अग्रवाल

10 comments:

  1. बहुत सुंदर...................

    रूमानियत के एहसास से भरी.......

    अनु

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  2. धन्यवाद रविकर भाई

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  3. चलो दूर सही
    तुम मेरी हिचकियों में
    अब भी शामिल हो …………वाह क्या खूब ख्याल है।

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  4. रात के दुसरे पहर में
    अनदेखे ख्वाब
    सिसक उठते हैं...............
    इतनी उत्कृष्ट रचना में वर्तनी की अशुद्ध खटकती है कृपया 'दूसरे' कर लें .बढ़िया कृति के लिए बधाई .कुछ रिश्ते अपरिभाषित चले आते हैं चुकते नहीं हैं ता -उम्र .उन्हीं रिश्तों को संबोधित है यह पोस्ट . कृपया यहाँ भी पधारें -
    रविवार, 22 अप्रैल 2012
    कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र -- भाग तीन
    कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र -- भाग तीन
    डॉ. दाराल और शेखर जी के बीच का संवाद बड़ा ही रोचक बन पड़ा है, अतः मुझे यही उचित लगा कि इस संवाद श्रंखला को भाग --तीन के रूप में " ज्यों की त्यों धरी दीन्हीं चदरिया " वाले अंदाज़ में प्रस्तुत कर दू जिससे अन्य गुणी जन भी लाभान्वित हो सकेंगे |
    वीरेंद्र शर्मा

    ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~(वीरुभाई

    )

    http://www.blogger.com/blogger.g?blogID=3256129195197204259#allposts


    कितनी थी हरजाई पूनो -
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/

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  5. कोमल भावो की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..सुन्दर ..

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  6. चलो दूर सही
    तुम मेरी हिचकियों में
    अब भी शामिल हो !!!... waah kya baat hai ... !!

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  7. मुझे नहीं पता
    मेरी किस्मत में तुम
    कितनी हांसिल हो..........

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