Saturday, August 3, 2019

मैं अकेला चलता हूँ .....संजय भास्कर


मैं अकेला चलता हूँ 
चाहे कोई साथ चले 
या न चले 
मैं अकेले ही खुश हूँ 
कोई साथ हो या न हो 
पर मेरी छाया
हमेशा मेरे साथ होती है !
जो हमेशा मेरे पीछे- २  
अक्सर मेरा पीछा करती है 
घर हो या बाज़ार
हमेशा मेरे साथ ही रहती है 
मेरी छाया से ही मुझे हौसला मिलता है !
क्योंकि नाते रिश्तेदार तो 
समय के साथ ही चलते है 
पर धूप हो या छाँव 
छाया हमेशा साथ रहती है 
और मुझे अकेलेपन का अहसास नहीं होने देती 
इसलिए मैं अकेला ही चलता हूँ ......!!

  
- संजय भास्कर  

23 comments:

  1. व्वाहहहह..
    शुक्रिया..
    सादर..

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  2. अकेले होकर भी अकेले कहाँ हो पाते हैं हम.. उन नाते-रिश्तेदारों की बातें यादें साये के संग लिपटी रहती है
    सस्नेहाशीष पुत्तर जी

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  3. सत्य कथन संजय जी ! जब कोई नही होता साथ तो अपना ही प्रतिबिम्ब होता है साथ में..निराशा में आशा का प्रतीक । अति उत्तम ।

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  4. सुंदर भाव सृजन संजय जी ।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04 -08-2019) को "आया है त्यौहार तीज का" (चर्चा अंक- 3417) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ....
    अनीता सैनी

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  6. बेहतरीन रचना संजय जी

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  7. प्रिय संजय , बहुत ही सही लिखा आपने | अपनी परछाई से हर इन्सान का अटूट रिश्ता होता है | ये साक्षी भाव से साथ रहकर किसी के साथ होने का एहसास जगाती है | सस्नेह शुभकामनायें आपके लिए | इस मंच पर आपकी रचना पढ़कर अत्यंत हर्ष हुआ |

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  8. किसी साथ का आसरा,या इन्तज़ार मन को कच्चा कर देता है -दृढ़ हो कर अपने ही बल पर बढ़ना संभव है.

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  9. बहुत बढ़िया...

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  10. मेरी छाया से ही मुझे हौसला मिलता है !
    क्योंकि नाते रिश्तेदार तो
    समय के साथ ही चलते है
    पर धूप हो या छाँव
    छाया हमेशा साथ रहती है
    बहुत सुन्दर सार्थक और सटीक रचना...

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