मैं अकेला चलता हूँ
चाहे कोई साथ चले
या न चले
मैं अकेले ही खुश हूँ
कोई साथ हो या न हो
पर मेरी छाया
हमेशा मेरे साथ होती है !
जो हमेशा मेरे पीछे- २
अक्सर मेरा पीछा करती है
घर हो या बाज़ार
हमेशा मेरे साथ ही रहती है
मेरी छाया से ही मुझे हौसला मिलता है !
क्योंकि नाते रिश्तेदार तो
समय के साथ ही चलते है
पर धूप हो या छाँव
छाया हमेशा साथ रहती है
और मुझे अकेलेपन का अहसास नहीं होने देती
इसलिए मैं अकेला ही चलता हूँ ......!!
- संजय भास्कर
व्वाहहहह..
ReplyDeleteशुक्रिया..
सादर..
हार्दिक आभार
Deleteअकेले होकर भी अकेले कहाँ हो पाते हैं हम.. उन नाते-रिश्तेदारों की बातें यादें साये के संग लिपटी रहती है
ReplyDeleteसस्नेहाशीष पुत्तर जी
हार्दिक आभार
Deleteसत्य कथन संजय जी ! जब कोई नही होता साथ तो अपना ही प्रतिबिम्ब होता है साथ में..निराशा में आशा का प्रतीक । अति उत्तम ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteसुंदर भाव सृजन संजय जी ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04 -08-2019) को "आया है त्यौहार तीज का" (चर्चा अंक- 3417) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी
हार्दिक आभार
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबेहतरीन रचना संजय जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteप्रिय संजय , बहुत ही सही लिखा आपने | अपनी परछाई से हर इन्सान का अटूट रिश्ता होता है | ये साक्षी भाव से साथ रहकर किसी के साथ होने का एहसास जगाती है | सस्नेह शुभकामनायें आपके लिए | इस मंच पर आपकी रचना पढ़कर अत्यंत हर्ष हुआ |
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteकिसी साथ का आसरा,या इन्तज़ार मन को कच्चा कर देता है -दृढ़ हो कर अपने ही बल पर बढ़ना संभव है.
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबहुत बढ़िया...
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteमेरी छाया से ही मुझे हौसला मिलता है !
ReplyDeleteक्योंकि नाते रिश्तेदार तो
समय के साथ ही चलते है
पर धूप हो या छाँव
छाया हमेशा साथ रहती है
बहुत सुन्दर सार्थक और सटीक रचना...
हार्दिक आभार
Deleteहार्दिक आभार
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