हथेलियों पर गुलाबी अक्षर
रख दो
इन कांपती हथेलियों पर
कुछ गुलाबी अक्षर
कुछ भीगी हुई नीली मात्राएं
बादामी होता जीवन का व्याकरण
चाहती हूँ कि
हथेली पर उग कोई कविता
अंकुरित हो जाए कोई भाव
प्रस्फुटित हो जाए कोई विचार
फूटने लगे ललछौंही कोंपलें...
मेरी हथेली की उर्वरा शक्ति
सिर्फ जानते हो तुम
और तुम ही दे सकते हो
कोई रंगीन-सी उगती हुई कविता
इस रंगहीन वक्त में ....
-फाल्गुनी
(पुस्तक कल ही मिली इसी संग्रह की पहली कविता है ये)
बहुत सुंदर कविता !
ReplyDeleteबहुत प्यार बहुत आभार... सही हाथों में पुस्तक अब पहुंची है 🥰💕🙏🏻✨
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteबहुत सुंदर कविता है 💐🌼✨❤️
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 18 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
मेरी प्यारी बहना, मेरी हथेली पर जब तेरी गुलाबी अक्षरों के गुलाबों से भरी हथेली आई तो उस पल मैं निहाल हो गई!! बहुत ही सुन्दर शब्दों का सुरीला झरना! ये अनवरत निर्बाध बहता रहे❤️
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteढेरों शुभकामनाएँ।
वाह ! नन्हीं सी, निश्छल, सुकुमार कविता !
ReplyDeleteवाह!!!
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