रश्क-ए-जन्नत बने जिंदगी का सफर।
फूल उस पर खिले जो डगर हो तेरी।
तुम जो मिले वक्त थम सा गया।
मुझको जन्नत लगे रहगुज़र हो तेरी।
कौन सा था नशा, हम बहकते गए।
सुरूर छाये गर, वो नज़र हो तेरी।
तुम जो बदले, दुनिया बदल सी गई।
हम न समझे नज़र किधर हो तेरी।
हवाओं का झोंका उड़ा ले गया।
अब न अपनी ख़बर न ख़बर हो तेरी।
खूब गुनाहों को मेरे मुझसे कहा।
कब तल भला, दिल में फिकर हो तेरी।
शाम सुबहा तेरी याद आये चली।
लब हिले न मगर जब जिकर हो तेरी।
-मनोरमा सिंह _ बल्लू सिंह
आजमगढ
शाम सुबहा तेरी याद आये चली।
ReplyDeleteलब हिले न मगर जब जिकर हो तेरी।
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वाह..बहुत खूब। बहुत बढ़िया।
बेहतरीन.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया, लाजवाब!!
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