Tuesday, September 21, 2021

किसी के समक्ष प्रिय…मत खुलना ...खेमकरण ‘सोमन’

विदा हो रहा हूँ
चाबी ने बस 
इतना ही कहा
जब तक आ न जाऊँ–


किसी के समक्ष प्रिय…मत खुलना
फिर कई चाबियाँ आईं- 
चली गईं
लेकिन न खुला ताला
न ताले का मन
यहाँ तक कि
हथौड़े की मार से टूट गया
बिखर गया
लहूलुहान हो गया
मर गया पर अपनी ओर से खुला नहीं !
पर उसके अंतिम शब्द
दुनिया के सामने खुलते चले गए–
प्रिय… तुमसे जो भी कहा, 
मैंने सुना
बस उसी कहे–सुने की 
लाज रखते हुए
विदा हो रहा हूँ!
प्रेम आकंठ डूबा हुआ
यकीनन… 
लाज रखता है
कहे–सुने गए,
अपने शब्दों की ।
-खेमकरण ‘सोमन’ 

9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 22सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

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    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

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  2. मैम, हार्दिक धन्यवाद।

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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