Friday, February 12, 2021

मै भारत-भूमि ! ...मंजू मिश्रा

मै भारत-भूमि !
ना जाने कब से
ढूंढ रही हूँ
अपने हिस्से की
रोशनी का टुकड़ा….
लेकिन पता नहीं क्यो
भ्रष्ट अवव्यस्था के ये अँधेरे
इतने गहरे हैं
कि फ़िर फ़िर टकरा जाती हूँ
अंधी गुफा की दीवारों से…
बाहर निकल ही नहीं पाती
इन जंजीरों से,
जिसमे मुझे जकड़ कर रखा है
मेरी ही संतानों ने

उन संतानों ने
जिनके पूर्वजों ने
लगा दी थी
जान की बाज़ी
मेरी आत्मा को
विदेशियों की चंगुल से
मुक्त कराने के लिए

हँसते हँसते
खेल गए जान पर
शहीद हो गये
माँ की आन पर
एक वो थे
जिनके लिए
देश सब कुछ था
देश की आजादी
सबसे बड़ी थी
एक ये हैं
जिनके लिए
देश कुछ भी नहीं
देश का मान सम्मान
कुछ भी नहीं
बस कुछ है तो
अपना स्वार्थ,
अपनी सम्पन्नता और
अपनी सत्ता ……

-मंजू मिश्रा


25 comments:

  1. देशप्रेम से ओतप्रोत सुन्दर रचना..

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    1. धन्यवाद जिज्ञासा जी

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज शुक्रवार 12 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. हँसते हँसते
    खेल गए जान पर
    शहीद हो गये
    माँ की आन पर
    एक वो थे
    जिनके लिए
    देश सब कुछ था
    देश की आजादी
    सबसे बड़ी थी...अतिसुंदर रचना

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    1. धन्यवाद शकुंतला जी!

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  4. देशप्रेम से ओतप्रोत बहुत ही सुंदर प्रस्तुति।

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    1. धन्यवाद ज्योति जी !

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  5. बहुत ही सुंदर और देश प्रेम से ओतप्रोत!
    हमारे ब्लॉग पर भी जरूर आइए और अपनी राय व्यक्त कीजिए आपका हार्दिक स्वागत है🙏🙏🙏🙏🙏

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  6. बहुत ही सुंदर लिखा है आपने नमन है आपको आप मेरी रचना भी पढना

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  7. बहुत ही बढ़िया, सादर नमन

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  8. बढ़िया लिखा है

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  9. एक ये हैं
    जिनके लिए
    देश कुछ भी नहीं
    देश का मान सम्मान
    कुछ भी नहीं
    बस कुछ है तो
    अपना स्वार्थ,
    अपनी सम्पन्नता और
    अपनी सत्ता ……
    बहुत सुन्दर सटीक एवं सार्थक सृजन।

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  10. हँसते हँसते
    खेल गए जान पर
    शहीद हो गये
    माँ की आन पर
    एक वो थे
    जिनके लिए
    देश सब कुछ था


    अतुलनीय रचना। सादर नमन।

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  13. ना जाने कब से
    ढूंढ रही हूँ
    अपने हिस्से की
    रोशनी का टुकड़ा… बहुत खूब

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  14. https://saumya-cupofwords.blogspot.com

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  15. वाह. बहुत सुन्दर

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  16. बाहर निकल ही नहीं पाती
    इन जंजीरों से,
    जिसमे मुझे जकड़ कर रखा है
    मेरी ही संतानों ने - पीड़ाजनक विवशता! सुन्दर रचना मंजू जी!

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