मै भारत-भूमि !
ना जाने कब से
ढूंढ रही हूँ
अपने हिस्से की
रोशनी का टुकड़ा….
लेकिन पता नहीं क्यो
भ्रष्ट अवव्यस्था के ये अँधेरे
इतने गहरे हैं
कि फ़िर फ़िर टकरा जाती हूँ
अंधी गुफा की दीवारों से…
बाहर निकल ही नहीं पाती
इन जंजीरों से,
जिसमे मुझे जकड़ कर रखा है
मेरी ही संतानों ने
उन संतानों ने
जिनके पूर्वजों ने
लगा दी थी
जान की बाज़ी
मेरी आत्मा को
विदेशियों की चंगुल से
मुक्त कराने के लिए
हँसते हँसते
खेल गए जान पर
शहीद हो गये
माँ की आन पर
एक वो थे
जिनके लिए
देश सब कुछ था
देश की आजादी
सबसे बड़ी थी
एक ये हैं
जिनके लिए
देश कुछ भी नहीं
देश का मान सम्मान
कुछ भी नहीं
बस कुछ है तो
अपना स्वार्थ,
अपनी सम्पन्नता और
अपनी सत्ता ……
-मंजू मिश्रा
देशप्रेम से ओतप्रोत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteधन्यवाद जिज्ञासा जी
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 12 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहँसते हँसते
ReplyDeleteखेल गए जान पर
शहीद हो गये
माँ की आन पर
एक वो थे
जिनके लिए
देश सब कुछ था
देश की आजादी
सबसे बड़ी थी...अतिसुंदर रचना
धन्यवाद शकुंतला जी!
Deleteदेशप्रेम से ओतप्रोत बहुत ही सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति जी !
Deleteधन्यवाद !
ReplyDeleteधन्यवाद !
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और देश प्रेम से ओतप्रोत!
ReplyDeleteहमारे ब्लॉग पर भी जरूर आइए और अपनी राय व्यक्त कीजिए आपका हार्दिक स्वागत है🙏🙏🙏🙏🙏
बहुत ही सुंदर लिखा है आपने नमन है आपको आप मेरी रचना भी पढना
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया, सादर नमन
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है
ReplyDeleteNice Post :- skymovieshd, skymovieshd.in, skymovieshd movies Download in Hindi | Bollywood Hollywood movie download
ReplyDeleteबहुत सुंदर,
ReplyDeleteएक ये हैं
ReplyDeleteजिनके लिए
देश कुछ भी नहीं
देश का मान सम्मान
कुछ भी नहीं
बस कुछ है तो
अपना स्वार्थ,
अपनी सम्पन्नता और
अपनी सत्ता ……
बहुत सुन्दर सटीक एवं सार्थक सृजन।
हँसते हँसते
ReplyDeleteखेल गए जान पर
शहीद हो गये
माँ की आन पर
एक वो थे
जिनके लिए
देश सब कुछ था
अतुलनीय रचना। सादर नमन।
आप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
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ReplyDeleteना जाने कब से
ReplyDeleteढूंढ रही हूँ
अपने हिस्से की
रोशनी का टुकड़ा… बहुत खूब
https://saumya-cupofwords.blogspot.com
ReplyDeleteवाह. बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबाहर निकल ही नहीं पाती
ReplyDeleteइन जंजीरों से,
जिसमे मुझे जकड़ कर रखा है
मेरी ही संतानों ने - पीड़ाजनक विवशता! सुन्दर रचना मंजू जी!