मैं अच्छी नहीं हूं
मुझे मेहँदी लगानी नहीं आती।
ना ही रंगोली बनानी आती।
मैं बंद बोतल के ढक्कन जैसी।
मुझे दही जमानी नहीं आती।
ना कभी व्रत की पति के लिए।
ना कभी बेटा के लिए।
मैं सब जैसी औरत नहीं।
मुझे गढ़ी कहानी नहीं आती।
मुझे ढोल बजाना नहीं आता।
ना नाचना गाना आता।
मैं अल्हड़ सी मस्तानी हूँ।
कोई हुनर जमाना नहीं आता।
लोगो के हँसी का पात्र हूँ।
मुझे अंदाज में रहना नहीं आता।
मैं बंद बोतल के ढक्कन जैसी।
मुझे दही जमाना नहीं आता।
सब कहते हैं भजन करो।
पर मुझे पुण्य कमाना नहीं आता।
मैं अल्हड़ सी मस्तानी हूँ।
कोई हुनर जमाना नहीं आता।
कुछ खूबी हो तो मैं लिखूँ।
मुझे अच्छा बन जाना नहीं आता।
घर की लक्ष्मी हूँ मैं।
पर मुझे नारायण को मनाना नहीं आता।
साधारण हूँ बेबाक भी हूँ मैं।
मुझे किसी को जलाना नहीं आता।
अंतर्मन की अंतर्वेदना हूँ मैं।
मुझे मजाक बनाना नहीं आता।
मैं बंद बोतल के ढक्कन जैसी।
मुझे दही जमाना नहीं आता।
मैं अल्हड़ सी मस्तानी हूँ।
कोई हुनर जमाना नहीं आता।
[स्वरचित]
-पूजा गुप्ता
मिर्ज़ापुर (उत्तर प्रदेश)
जैसी हो बस प्रेमिल हो
ReplyDeleteरचना सुन्दर
सुन्दर रचना....
ReplyDeleteअति सुन्दर है ये बेबाकी ।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबधाई
मुझे नहीं आता इस बात की स्वीकारोक्ति ही बहुत बड़ी बात है। बहुत सुंदर।
ReplyDeleteमैं अल्हड़ सी मस्तानी हूँ।
ReplyDeleteकोई हुनर जमाना नहीं आता।
वाह।।।
अन्तर्मन की अंतर्वेदना हँ मैं
ReplyDeleteमुझे मजाक बनाना नहीं आता।
बहुत उम्दा।