दुःसह वेदना कोण-कोण में
रूप नवल प्रतिबिंब भरे हैं
चूर्ण हो रहे मुकुल प्रतिच्छवि
आशाएँ कण कण बिखरे हैं
सूने मन की राह गुंजरित
कंठ सिसकियाँ ध्वनि चलती हैं
नयनों में जल भरा रह गया
हृदय मध्य ज्वाला जलती है
जल उठते वो जीवन के पल
छा जाते यादों में छलके
नयन उदास हृदय के अंदर
छाले फूट -फूट के झलके
स्नेह भरा वह कोमल बन्धन
छू न सका हलके से उर में
कब तक ये दुर्भाग्य साथ है
कह दूँ किसे कौन से सुर में
कर सर्वस्व समर्पण पग पर
सो जाऊँ उस तरु छाया में
नहीं चाहती कभी जागरण
असह्य विरह की इस माया में
कभी ना समझी ना कुछ अनुभव
असफलता जीवन में जाना
ठोकर जो पग -पग पर लगती
उसको कभी नहीं पहचाना
- डॉ. अंशु सिंह
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteआदर सहित कोटिशः धन्यवाद आदरणीय 🙏🙏
Deleteवाह।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आदरणीय 🙏🙏
Deleteवाह
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय 🙏🙏
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआदर सहित कोटिशः धन्यवाद आदरणीय 🙏🙏
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय 🙏🙏
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