Monday, December 14, 2020

समर्पण ....अजनबी

 


अपनी मोहब्बत को इक नाम यह भी दे दो-
ये अजनबी सी आंखों का समर्पण है बस

ना तुम हो, ना मैं हूं, ना जमाने की भीड़-
हम दोनों के बीच खड़ा गूंगा दर्पण है बस।

क्या दूं, क्या है, पास मेरे बताओ तो जरा-
मेरा तो हर ख्वाइश तुझ पर अर्पण है बस।

सुनो जरा, समझो मुझे, झांक कर देखो तो-
मेरे मन के हर ख्वाब में तेरा ही दर्शन है बस।

भला दूं तुम्हें या, तुम भूल जाओ, "अजनबी"-
समझ लेना उसी दिन, हो गया तड़पन है बस।।
"अजनबी"

7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 14 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत ही सुंदर और सारगर्भित रचना..।

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  3. बहुत सुंदर और सारगर्भित रचना..।

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  4. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना।

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  5. भावपूर्ण सुंदर रचना।

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  6. वाह
    बहुत सुंदर

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