Sunday, November 8, 2020

मेरी आरज़ू न पूछ ...डॉ. नवीमणि त्रिपाठी

 
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यूँ दफ़अतन तू  मुझसे  मेरी  आरज़ू न  पूछ ।
इस दिल की बार बार नई जुस्तुजू  न पूछ ।।

हर  सिम्त  रहजनों की  है  बस्ती   दयार  में ।
कब तक बचेगी  यार  यहाँ  आबरू  न पूछ ।।

क़ातिल पे रख नज़र को तू खामोशियों के साथ ।
किसने  बहाया अम्न का  इतना  लहू  न पूछ।।

गिरगिट की  तरह  रंग  बदलते  जो लीडरान।
ऐ  ख़ाकसार  उनकी  कभी  सुर्ख़रु  न पूछ ।।

मस्ज़िद में आ गए हैं वो इतना तो कम नहीं ।
हैं  बे  वज़ू  या  बा  वज़ू ये  हाल तू न पूछ ।।

रिंदों को मिल  रहा  है ख़ुदा  क्यूँ  शराब में ।
ज़ाहिद तू  मेरी मैक़दे की गुफ़्तगू न पूछ ।।

पूछा पता सनम का तो उसने ये कह दिया ।
मतलब की बात करले मगर फालतू न पूछ ।।

फैली  ख़बर  है  जब  से तेरे आशनाई की ।
कितने  जनम  लिए  हैं  हमारे  अदू  न पूछ ।।

कुछ तो  फ़ज़ा  के  राज़ को पर्दे में रहने दे ।
ख़ुशबू  किधर  से आती  है ये चार  सू न पूछ ।।

अल्फ़ाज़  कम  पड़ेंगे  बयां  के  लिए मेरे ।
मंजर  था  कैसा  हिज़्र का तू हूबहू न पूछ ।।

-डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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