उठो
सीधी खड़ी हो
और खुद पर यकीन करो
तुम किसी से कम नहीं हो
तुम झूठे पौरुष के दंभ का शिकार
जानवरों का शिकार तो
बिलकुल नहीं बनोगी
तुम जिंदगी में
किसी से नहीं डरोगी ....
***
अपने
पैरों के नीचे की जमीन
और सर के ऊपर का आसमान
तुम खुद तलाश करोगी
तुम्हे अपनी जिंदगी से जो चाहिए
उसके होने न होने की राह भी
तुम खुद तय करोगी
तुम जिंदगी में
किसी से नहीं डरोगी ....
***
रिश्तों का मोल
तुम खूब पहचानती हो
इनको निभाने का सलीका भी
खूब जानती हो लेकिन
तुम कमजोर नहीं हो
अपने स्वाभिमान की कीमत पर
तुम कुछ नहीं सहोगी
तुम जिंदगी में
किसी से नहीं डरोगी ....
***
-मंजू मिश्रा
मूल रचना
सु न्दर सृ जन
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब।