अपनी मंज़िल का रास्ता भेजो
जान हम को वहाँ बुला भेजो
क्या हमारा नहीं रहा सावन
ज़ुल्फ़ याँ भी कोई घटा भेजो
नई कलियाँ जो अब खिली हैं वहाँ
उन की ख़ुश्बू को इक ज़रा भेजो
हम न जीते हैं और न मरते हैं
दर्द भेजो न तुम दवा भेजो
धूल उड़ती है जो उस आँगन में
उस को भेजो सबा सबा भेजो
ऐ फकीरों गली के उस गुल की
तुम हमें अपनी ख़ाक-ए-पा भेजो
-जौन एलिया
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 06 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह !👌
ReplyDeleteलाजवाब
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteसही ही सुन्दर।