Tuesday, June 9, 2020

लैम्प पोस्ट ... संध्या गुप्ता


ये सुनसान फैली सड़क है
लैम्प पोस्ट की रौशनी में
चमचमाते भवन हैं
एक के बाद एक

सब में मरे पड़े हैं आदमी

ये पूरा इलाका एक मुर्दा-घर है
इस मुर्दा-घर में मैं अकेली खड़ी
सन्नाटे के बीच
तलाश रही हूं कब से एक अदद आदमी!

हां , मुझे नींद में चलने की आदत है!
- संध्या गुप्ता

मूल रचना

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