ये सुनसान फैली सड़क है
लैम्प पोस्ट की रौशनी में
चमचमाते भवन हैं
एक के बाद एक
सब में मरे पड़े हैं आदमी
ये पूरा इलाका एक मुर्दा-घर है
इस मुर्दा-घर में मैं अकेली खड़ी
सन्नाटे के बीच
तलाश रही हूं कब से एक अदद आदमी!
हां , मुझे नींद में चलने की आदत है!
- संध्या गुप्ता
मूल रचना
वाह! अद्भुत!
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteगज़ब!!👋
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