माँ,
सुनो न!
रचती तुम भी हो
और
वह.
ईश्वर भी!
सुनते है,
तुमको भी,
उसीने रचा है!
फिर!
उसकी
यह रचना,
रचयिता से
अच्छी क्यों!
भेद भी किये
उसने
रचना में,
अपनी !
और,
तुम्हारी रचना!
.....................
बिलकुल उलटा!
फिर भी तुम
लौट गयी
उसी के पास !
कितनी
भोली हो तुम!
माँ, सुन रही हो न......
माँ............!!!
-विश्वमोहन कुमार
-विश्वमोहन कुमार
जी, अत्यंत आभार आपके स्नेहाशीष का।🙏🙏🌹🌹🙏🙏
ReplyDeleteसादर आभार।
Deleteलाजवाब
ReplyDeleteसादर आभार।
Deleteफिर भी तुम
ReplyDeleteलौट गयी
उसी के पास !
कितनी
भोली हो तुम!
माँ, सुन रही हो न......
माँ............!!!
मार्मिक उद्बोधन और भावों से भरी पाती माँ के नाम !! 🙏🙏🙏🙏
सादर आभार।
Deleteउसकी
ReplyDeleteयह रचना,
रचयिता से
अच्छी क्यों!
भेद भी किये
उसने
रचना में,
अपनी !
और,
तुम्हारी रचना!
शायद हम अपने रचयिता के प्रति पूर्ण समर्पित नहीं थे ,सुंदर और मार्मिक प्रश्न ,सादर नमन
सादर आभार।
Deleteलाज़बाब रचना👌👌
ReplyDeleteलाजवाब👌👌👌
ReplyDeleteसादर आभार।
Deleteदिल पे दस्तक देती रचना
ReplyDeleteसादर आभार।
Deleteवाह!बेहतरीन सृजन विश्वमोहन जी ।
ReplyDeleteसादर आभार।
Deleteसादर आभार।
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