फ़ोन की घण्टी बजी
मैंने कहा — मैं नहीं हूँ
और करवट बदल कर सो गया।
दरवाज़े की घण्टी बजी
मैंने कहा — मैं नहीं हूँ
और करवट बदल कर सो गया।
अलार्म की घण्टी बजी
मैंने कहा — मैं नहीं हूँ
और करवट बदल कर सो गया।
एक दिन
मौत की घण्टी बजी...
हड़बड़ा कर उठ बैठा —
मैं हूँ... मैं हूँ... मैं हूँ..
मौत ने कहा —
करवट बदल कर सो जाओ।
-कुंवर नारायण
मृत्यु के दरवाज़ा खटखटाने से पूर्व उन सभी घंटियों का स्वर सुनना ज़रूरी है क्योंकि उसे टालना व्यक्ति के वश में नहीं।
ReplyDeleteशानदार हस्तक्षेप के साथ विराट संदेश का संप्रेषण करती बेजोड़ रचना।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 12 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteक्योंकि मौत से छुपना मुमकिन कहाँ...
मौत अंतिम सत्य है कब किस करवट सुला जाय कोई नहीं जानता
ReplyDeleteइंसान को जिंदगी मिली है कुछ जिम्मेदारियाँ पूरी करने के लिए। जिम्मेदारियों से भागना उचित नहीं। मृत्यु तो अंतिम सत्य है उससे चाहकर भी भागा नही जा सकता। अतः आनेवाली हर बाधा का डटकर मुकाबला करने के लिए इंसान को सदैव तत्पर रहना चाहिए।
ReplyDeleteअच्छी संदेशप्रद रचना।👌👌👌
मौत अटल हैं,उसे कोई नहीं टाल सकता। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
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