हिंदी के श्रेष्ठ कवि और गीतकार
स्मृतिशेष किशन सरोज जी
का निधन 8 जनवरी 2020 को हुआ।
वे काफी समय से बीमार चल रहे थे,
हालत दिन ब दिन बिगड़ती जा रही थी और
कुछ दिनों से लोगों को पहचान भी नहीं पा रहे थे।
प्रस्तुत है उनकी एक कविता
नागफनी आँचल में बाँध सको तो आना
धागों बिन्धे गुलाब हमारे पास नहीं।
हम तो ठहरे निपट अभागे
आधे सोए, आधे जागे
थोड़े सुख के लिए उम्र भर
गाते फिरे भीड़ के आगे
कहाँ-कहाँ हम कितनी बार हुए अपमानित
इसका सही हिसाब हमारे पास नहीं।
हमने व्यथा अनमनी बेची
तन की ज्योति कंचनी बेची
कुछ न बचा तो अँधियारों को
मिट्टी मोल चान्दनी बेची
गीत रचे जो हमने, उन्हें याद रखना तुम
रत्नों मढ़ी किताब हमारे पास नहीं।
झिलमिल करती मधुशालाएँ
दिन ढलते ही हमें रिझाएँ
घड़ी-घड़ी, हर घूँट-घूँट हम
जी-जी जाएँ, मर-मर जाएँ
पी कर जिसको चित्र तुम्हारा धुँधला जाए
इतनी कड़ी शराब हमारे पास नहीं।
आखर-आखर दीपक बाले
खोले हमने मन के ताले
तुम बिन हमें न भाए पल भर
अभिनन्दन के शाल-दुशाले
अबके बिछुड़े कहाँ मिलेंगे, यह मत पूछो
कोई अभी जवाब हमारे पास नहीं।
30 जनवरी 1939 - 08 जनवरी 2020
-किशन सरोज
सादर श्रद्धा सुमन
सादर श्रद्धा सुमन
नमन व श्रद्धाँजलि।
ReplyDeleteनमन व श्रद्धांजलि। किशन सरोज जी के गीत व कविताएँ कविता कोश पर पढ़े हैं। गहन भावपूर्ण लेखन व उच्च कोटि के शब्द शिल्प से सजी आपकी रचनाएँ हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं।
ReplyDeleteकिशन सरोज जी को नमन एवं श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteक़ुदरत की सुन्दरता को अलग तरीके से बखान करने वाले श्रृंगार रस के राग भाव वाले रचयिता को नमन व श्रद्धांजलि ..
ReplyDeleteआम मन को कोसते हुए उनका क़ुदरत प्रेम दर्शाने का नायाब तरीका का नमूना ...
बड़ा आश्चर्य है
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नीम तरू से फूल झरते हैँ
तुम्हारा मन नहीं छूते
बड़ा आश्चर्य है
रीझ, सुरभित हरित -वसना
घाटियों पर
व्यँग्य से हँसते हुए
परिपाटियों पर
इँद्रधनु सजते- सँवरते हैँ
तुम्हारा मन नहीं छूते
बड़ा आश्चर्य है
गहन काली रात
बरखा की झड़ी में
याद डूबी ,नींद से
रूठी घड़ी में
दूर वँशी -स्वर उभरते हैँ
तुम्हारा मन नहीं छूते
बड़ा आश्चर्य है
वॄक्ष, पर्वत, नदी,
बादल, चाँद-तारे
दीप, जुगनू , देव–दुर्लभ
अश्रु खारे
गीत कितने रूप धरते हैँ
तुम्हारा मन नहीँ छूते
बड़ा आश्चर्य है