"गुम हो कहीं ?" पूछा किसी ने
क्या पता है तुझे अपना पता?
क्यों कोई नहीं जानता मुझे इस दुनिया में
क्या कोई नहीं है मेरा अपना!!
भूल गई हूँ अपना पता,
रोज़ मेरा पता बदलता है।
पहले माँ का घर पे थी टेहरी
वही था मेरा पता तब।
तब आयी मेरे साथी की बारी
सफ़र था कोई जिसमें
उसका साथ था ज़रूरी
चली मैं उसके साथ,
फिर बदल गया मेरा पता तब।
फिर थी मेरे अंशों की बारी,
कहाँ, रखेंगे हम तुम्हारा ख़्याल,
बस बदल दो अपना पता,
फिर मेरा पता बदल गया।
मैं किस पते को अपना कहूँ?
जब पूछे मुझसे मेरा पता
मैं कौन-सा पता बताऊँ,
जो मैं आपने घर पहुंच जाऊँ।
मेरा पता कोई मुझे बता दे,
बस एक ऐसा पता जो हमेशा मेरा रहे
जिसे मैं बता सकूँ अपना पता
बस एक ऐसा पता जो हमेशा रहे मेरा।
-(गुड्डू) दिव्या कुमारी
वाह
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