तेज धड़कनों का सच
समय के साथ बदल जाता है
कभी देखते ही
या स्पर्श भर से
स्वमेव तेज रुधिर धार
बता देती थी
हृदय के अलिंद निलय के बीच
लाल-श्वेत रक्त कोशिकाएं भी
करने लगती थी प्रेमालाप
वजह होती थीं 'तुम'
इन दिनों उम्र के साथ
धड़कनों ने फिर से
शुरू की है तेज़ी दिखानी
वजह बेशक
दिल द मामला है
जहाँ कभी बसती थी 'तुम'
तुम और तुम्हारा स्पर्श
उन दिनों
कोलेस्ट्रॉल पिघला देते थे
शायद!
पर, इन दिनों उसी कोलेस्ट्रॉल ने
दिल के कुछ नसों के भीतर
बसा लिया है डेरा
बढ़ा दिया करती हैं धड़कनें
ख़ाम्ख़्वाह!
मेडिकल रिपोर्ट्स
बता रही हैं
करवानी ही होगी
एंजियोप्लास्टी
आखिर तुम व तुम्हारा स्पर्श
सम्भव भी तो नहीं है
-मुकेश कुमार सिन्हा
मूल रचना
मूल रचना
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " गुरुवार 3 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत
ReplyDeleteबधाई
लाजवाब साइंस और अहसास जबरदस्त तालमेल बिठाती रचना ।
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