चारों तरफ कैसा तूफान है
हर दीपक दम तोड़ रहा है !
इंसानों की भीड जितनी बढी है
आदमियत उतनी ही नदारद है !
हाथों मे तीर लिये हर शख्स है
हर नजर नाखून लिये बैठी है !
किनारों पे दम तोडती लहरें है
समंदर से लगती खफा खफा है !
स्वार्थ का खेल हर कोई खेल रहा है
मासूमियत लाचार दम तोड रही है !
शांति के दूत कहीं दिखते नही है
हर और शिकारी बाज उड रहे है !
कितने हिस्सों मे बंट गया मानव है
अमन ओ चैन मुह छुपा के रो रहा है !!
-- कुसुम कोठारी
बेहतरीन
ReplyDeleteयही दीपक इस तम को भी दूर करेगा। आशावान रहें । चिंतनपरक इस रचना हेतु बधाई ।
ReplyDeleteवाह.... अप्रतिम
ReplyDeleteवाह !बहुत सुन्दर
ReplyDeleteइंसानों की भीड जितनी बढी है
ReplyDeleteआदमियत उतनी ही नदारद है
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति कुसुम जी ,सादर नमन