Tuesday, July 2, 2019

प्रकृति सुर में नहीं है..... ज्योत्सना मिश्रा 'सना'

वो कहते हैं आजकल प्रकृति 
बिलकुल भी सुर में नहीं है 
हम कहते हैं प्रकृति हेतु सम्मान 
कदाचित् तुम्हारे उर में नहीं है। 

अपने स्वार्थ के लिए कर रहे हम 
प्रकृति का इतना विलय 
कि जाने अनजाने ही भूल रही 
धरित्री अपनी उचित लय। 

दिया है माँ धरित्री ने इतना 
हो सके हर मनुष का पोषण 
परन्तु लोलुपता के वशीभूत हो 
कर रहे अपनी ही माँ का शोषण। 

जो तू बोएगा वही कल काटेगा 
हो रहा है पूर्ण यह वलय 
सावधान! मनुष्य तेरा ही कृत्य 
ला रहा प्रतिदिन नई प्रलय। 

चाहत है गर कि न हो जाए 
यह ब्रह्मांड इतना शीघ्र शेष 
तो जाग और जगा सबको 
बचा ले उसे जो रहा अवशेष। 

वो कहते हैं आजकल प्रकृति 
बिलकुल भी सुर में नहीं है 
हम कहते हैं प्रकृति हेतु सम्मान 
कदाचित् तुम्हारे उर में नहीं है। 
-ज्योत्सना मिश्रा  'सना'

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर सृजन ।

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  2. वाह!!बहुत सुंदर!

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-07-2019) को "मेघ मल्हार" (चर्चा अंक- 3385) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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