रद़ीफ - है मुझे
क़ाफ़िया - ता(आ)
बड़ी सिद्दत से कोई चाहता है मुझे,
मुझसे भी अधिक वो जानता है मुझे।
गूंजती है आवाज कानों में मेरी,
दूर पहाड़ों से कोई पुकारता है मुझे।
मंदिरों में भी घंटे बजाता है हरदम,
जाके रब से सदा माँगता है मुझे।
खुली खिड़कियां जो कभी मेरे घर की,
छुप के पेड़ों से फिर झांकता है मुझे।
प्यार करता हूँ मैं सदियों से तुझे,
अपनी हरकतों से ये जताता है मुझे।
बड़ा मजबूर हूँ मैं, गमों से चूर हूँ मैं,
बहते हुए अश्कों से ये बताता है मुझे।
तड़प उठती हूँ मैं जब भी देखूँ उसे,
क्या है रिश्ता उससे जो सताता है मुझे।
स्वरचित,
-पूनम सिन्हा,
धनबाद,झारखंड।
बहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (14-06-2019) को "काला अक्षर भैंस बराबर" (चर्चा अंक- 3366) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर शेर ...
ReplyDeleteप्रेम रस में पगे भाव ...