स्त्री सुख की खोज में
और प्रेम की चाह में
मरीचिका की मृगी की तरह भागती रहती है
पिता के घर से पति के घर
पति के घर से बेटे के घर ..
पुनः पुनः लौटने को ..
हर जगह से बटोरती हैं क़िस्से
जिन्हें याद कर अतीत में झाँकती रहती है..
न जाने क्यों
हर वर्तमान अतीत से ज़्यादा बेबस मालूम होता है
अतीत से ज़्यादा ख़ाली ..
न जाने क्यों
हर बार प्रेम और सुख की चाह यूँ टूटती है
मानो रात से रोशनी टूटी हो ...
-निधि सक्सेना
मर्मस्पर्शीय ....
ReplyDeleteजमाना बदल गया भारत विकास की राह पर चल पड़ा परन्तु कुछ अपवादों के सिवाय नारी की वही कहानी है जो सदियों से चली आरही है
ReplyDelete"आँचल में है दूध और आंखों में पानी" मर्मस्पर्शीय रचना
मार्मिक रचना
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी सृजन ।
ReplyDeleteहृदय स्पर्शी रचना ।
ReplyDeleteअनुभूतियां और अहसास।
एक औरत के मनोभाव का बहुत ही सुंदर चित्रण ,सादर नमस्कार
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteइतना बढ़िया लेख पोस्ट करने के लिए धन्यवाद! अच्छा काम करते रहें!। इस अद्भुत लेख के लिए धन्यवाद
ReplyDeletegana download kaise kare
वाह!!
ReplyDeleteवाह!!बहुत खूब!
ReplyDeleteन जाने क्यों
ReplyDeleteहर वर्तमान अतीत से ज़्यादा बेबस मालूम होता है
अतीत से ज़्यादा ख़ाली। बहुत सुन्दर। स्वयं शून्य
बहुत ही सुंदर चित्रण
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