ख़ुदा की दवा को जफ़ा मानते हो,
है उसकी अता ये ना पहचानते हो।
ये उसकी नहीं बन्दे तेरी ख़ता है,
ख़फ़ा है अकारण तुझे क्या पता है।
सज़ा है ये तेरी या तुझ पे भरोसा,
जाने ये कैसे क्या है तू ख़ुदा सा?
क्या जाने ख़ुदा की नई सी दुआ है,
तू नाहक़ समझता ग़लत सा हुआ है।
जब न रहेगा इस जग में अँधेरा,
जाने जग कैसे सूरज का बसेरा।
जब प्यूपा रगड़ता है ख़ुद के बदन को,
तभी जाके पाता है, पूर्ण अपने तन को।
जो हल को न राज़ी, आकांक्षी है छाया,
उन्हें तो बस मिलती है कोमल ही काया।
गर तुझको मोहब्बत है ख़ुद के ख़ुदा से,
तो लानत फिर कैसी शिकायत ख़ुदा से?
है ठीक औ ग़लत क्या ये सब जानते हैं,
बामुश्क़िल ही पर उसको पहचानते हैं।
वो सृष्टि का कर्ता है सृष्टि का कारण,
करे कोई कैसे भी उसका निर्धारण?
-अजय अमिताभ 'सुमन'