सात रंग का
छाता बनकर
कड़ी धूप में तुम आती हो ।
अलिखित
मौसम के गीतों को
मीरा जैसा तुम गाती हो ।
जब सारा
संसार हमारा साथ
छोड़कर चल देता है,
तपते हुए
माथ पर तेरा
हाथ बहुत सम्बल देता है,
आँगन में
चाँदनी रात हो,
चौरे पर दीया-बाती हो ।
कभी रूठना
और मनाना
इसमें भी श्रृंगार भरा है,
बादल-बिजली के
गर्जन से
अमलतास वन हरा-भरा है,
बार -बार
पढ़ता सारा घर
तुम तो एक सगुन पाती हो ।
-जयकृष्ण राय तुषार
आदरणीया यशोदा जी इतना सम्मान और स्नेह देने के लिए आपका हृदय से आभार
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ReplyDeleteनारी के गरिमामय रुप का बहुत सुन्दर चित्रण । बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteवाह सुन्दर गीत
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत मोहक कोमल बिंबों से सजी कोमल रचना।
ReplyDeleteतपते हुए
ReplyDeleteमाथ पर तेरा
हाथ बहुत सम्बल देता है,..क्या खूब कहा है तुषार जी ने
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (20-05-2019) को "चलो केदार-बदरी" (चर्चा अंक- 3341) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'