देह की
परिधियों तक
सीमित कर
स्त्री की
परिभाषा
है नारेबाजी
समानता की।
दस हो या पचास
कोख का सृजन
उसी रजस्वला काल
से संभव
तुम पवित्र हो
जन्म लेकर
जन्मदात्री
अपवित्र कैसे?
रुढ़ियों को
मान देकर
अपमान मातृत्व का
मान्यता की आड़ में
अहं तुष्टि या
सृष्टि के
शुचि कृति का
तमगा पुरुषत्व को
देव दृष्टि
सृष्टि के
समस्त जीव पर
समान,
फिर…
स्त्री पुरुष में भेद?
देवत्व को
परिभाषित करते
प्रतिनिधियो;
देवता का
सही अर्थ क्या?
देह के बंदीगृह से
स्वतंत्र होने को
छटपटाती आत्मा
स्त्री-पुरुष के भेद
मिटाकर ही
पा सकेगी
ब्रह्म और जीव
"कोख का सृजन
ReplyDeleteउसी रजस्वला काल
से संभव
तुम पवित्र हो
जन्म लेकर
जन्मदात्री
अपवित्र कैसे?".... पुरुष-प्रधान समाज के गर्वीले तने गर्दन पर सवाल की पैनी वार। जरुरत है आज इस तथाकथित समाज को समयोचित अन्धप्रम्पराओं में संशोधन करने की .... बहुत ही समयोचित सोच के ओत-प्रोत वाली रचना और रचनाकार को नमन !!
वाह ,अति सुन्दर यथार्थ परक रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर कटाक्ष करती रचना....,लाजबाब
ReplyDeleteरूढ़ियों को नाव देकर अपनी मातृत्व का ममता की आड़ में
ReplyDeleteवाह वाह क्या लिखा है। अति सुंदर और सराहनीय रचना।
वाह
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