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मैंने चिड़िया से कहा, 'मैं तुम पर एक
कविता लिखना चाहता हूँ ।'
चिड़िया ने मुझ से पूछा, 'तुम्हारे शब्दों में
मेरे परों की रंगीनी है ?'
मैंने कहा, 'नहीं ।'
'तुम्हारे शब्दों में मेरे कंठ का संगीत है ?'
'नहीं ।'
'तुम्हारे शब्दों में मेरे डैनों की उड़ान है ?'
'नहीं ।'
'जान है ?'
'नहीं ।'
'तब तुम मुझ पर कविता क्या लिखोगे ?'
मैंने कहा, 'पर तुमसे मुझे प्यार है ।'
चिड़िया बोली, 'प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है ?'
एक अनुभव हुआ नया ।
मैं मौन हो गया !
-हरिवंशराय बच्चन
ओहह्ह.. गज़ब..अंचभित करता सृजन वाहह्हह...
ReplyDeleteआभार सर साक्षा करने के लिए।
सादर
इतनी सुन्दर रचना साझा करने आभार आपका ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता सच कवि कहीं भी पहुंच सकता है पर जानता है कि हर प्राणी के सोच का दायरा कितना विस्तृत होता है और कवि वहां भी अपने हिसाब से पहुंच ही जाता है।
ReplyDeleteशानदार कविता बच्चनजी की गहन दृष्टि को नमन।
वाह
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (31-03-2019) को " निष्पक्ष चुनाव के लिए " (चर्चा अंक-3291) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
-अनीता सैनी
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर संवाद कवि और चिड़िया के बीच
ReplyDeleteहरिवंश जी खुदको अयोग्य बताते हुए भी स्मरणीय कविता रच दिए हैं
आभार जी पढ़वाने के लिए
सादर