Wednesday, March 13, 2019

हरश्रृंगारी महक...अलका गुप्ता

तन - मन भिगो रही आज ...
यादों की हरश्रृंगारी महक ।
अल्हड उन बतियों की चहक ।
ढलकी - ढलकी चितवन ये ।
रूखे अधरों का कंपन ये ।
बिखर गई अलकों में ...
बीते दिनों की राख सी ...
सिमट गई लाली जो ...
झुर्रियों में अनायास ही ...
कसक बहुत रही है आज ।
जो तोड़ ना सके थे कायर हाथ ।
उन बीते दिनों के अनचाहे ...
बंधनों की झूठी लाज ।।
-अलका गुप्ता

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर
    सादर

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  2. वाह्ह्ह ¡
    अप्रतिम सुंदर सरस।

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  3. बहुत लाजवाब...
    वाह!!!

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  4. नमस्ते,

    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 14 मार्च 2019 को प्रकाशनार्थ 1336 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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  5. हार्दिक आभार रचना को सार्थकता प्रदान करने हेतु आदरणीय..सादर शुभं 🙂🙏

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  6. वाह!!बहुत सुंदर !!

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  7. कसक बहुत रही है आज ।
    जो तोड़ ना सके थे कायर हाथ ।
    उन बीते दिनों के अनचाहे ...
    बंधनों की झूठी लाज ।।

    वाह.....क्या खूब लिखा है। बधाई। सादर।

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  8. हार्दिक आभार आपके प्रेरक शब्दों हेतु वीरेंद्र सिंह जी ..सादर शुभम् !

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