तन - मन भिगो रही आज ...
यादों की हरश्रृंगारी महक ।
अल्हड उन बतियों की चहक ।
ढलकी - ढलकी चितवन ये ।
रूखे अधरों का कंपन ये ।
बिखर गई अलकों में ...
बीते दिनों की राख सी ...
सिमट गई लाली जो ...
झुर्रियों में अनायास ही ...
कसक बहुत रही है आज ।
जो तोड़ ना सके थे कायर हाथ ।
उन बीते दिनों के अनचाहे ...
बंधनों की झूठी लाज ।।
-अलका गुप्ता
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसादर
वाह्ह्ह ¡
ReplyDeleteअप्रतिम सुंदर सरस।
बहुत लाजवाब...
ReplyDeleteवाह!!!
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 14 मार्च 2019 को प्रकाशनार्थ 1336 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
हार्दिक आभार रचना को सार्थकता प्रदान करने हेतु आदरणीय..सादर शुभं 🙂🙏
ReplyDeleteवाह!!बहुत सुंदर !!
ReplyDeleteसादर आभार 🙏🙂
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार 🙏🙂
Deleteकसक बहुत रही है आज ।
ReplyDeleteजो तोड़ ना सके थे कायर हाथ ।
उन बीते दिनों के अनचाहे ...
बंधनों की झूठी लाज ।।
वाह.....क्या खूब लिखा है। बधाई। सादर।
हार्दिक आभार आपके प्रेरक शब्दों हेतु वीरेंद्र सिंह जी ..सादर शुभम् !
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